मुश्किल नहीं समझना
"बह रही हूँ नदिया सी मैं,
अपनी ही धुन में हो मगन।
थाम ले जो तू बन सागर,
समर्पित कर दूं पूरा जीवन।।
कुछ राज़ बड़े गहरे मन के,
अर्थ खोज रहे इस जीवन का।
समझ न सके जग जिसको,
भेद जाने क्या कोई मन का।।
मृगमरीचिका सी ही मिली मुझे,
सच को जितना ढूढ़ा जीवन में।
हार जीत में अब फ़र्क नहीं रहा,
शून्यता ठहर गयी जब मन में।।
भावों की सरिता गहरी बड़ी,
ना तुम समझो ना मैं समझाऊँ।
हो समाहित एक दूसरे में हम,
विलीन मैं तुझसे ही हो जाऊं।।"
"ऋcha"
अपनी ही धुन में हो मगन।
थाम ले जो तू बन सागर,
समर्पित कर दूं पूरा जीवन।।
कुछ राज़ बड़े गहरे मन के,
अर्थ खोज रहे इस जीवन का।
समझ न सके जग जिसको,
भेद जाने क्या कोई मन का।।
मृगमरीचिका सी ही मिली मुझे,
सच को जितना ढूढ़ा जीवन में।
हार जीत में अब फ़र्क नहीं रहा,
शून्यता ठहर गयी जब मन में।।
भावों की सरिता गहरी बड़ी,
ना तुम समझो ना मैं समझाऊँ।
हो समाहित एक दूसरे में हम,
विलीन मैं तुझसे ही हो जाऊं।।"
"ऋcha"