...

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घर
रोज़ शाम को घर की तरफ़ खींची आती हूँ
हर गली, हर कूचे पर तेरे निशान पाती हूँ...

घर की दीवारें, खिड़कियाँ दरवाज़े जैसे रूठे है तेरे जाने से...
बाकायदा...हर शाम...