...

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नज़ारे खेतों के..
क्या नजारा था वो... सुकून कहूं उसे
बारिश से महकी मिट्टी थी..
हरी चादर सी फैलीं धरती थी
था पक्षियों का संगीत वहां..
शांति की परिभाषा थी
धीमी धीमी सी वायु थी..
अधखुली आंखों सा सुरज था
मोती सी बूंदें थी ओस की..
बच्चों सी खेलती फसलें थी
बातें करता सा झुंड नीलगायों का..
हिरणों का मीठा सा शोर था
सभी व्यस्त वहां इस कदर जैसे...
सुकून में हंसता जीवन था

बेशक जाता वहां कच्चा रास्ता..पर निहारना खेतों को..
एक पल में जन्नत की सेर था..



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