...

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खुल कर हँसिए
और कोई चारा भी नहीं
अमीर गरीब पर
नेता जनता पर
ताकत कमजोर पर
खुल कर हसती है
बाजार मज़बूर
पर भ्रष्टाचार ईमानदारी पर
जाने कब से हस रहे
एक दूसरे पर
और खुद में मज़बूर भी
हंसी में आवाज़ दब जाती है
© "the dust"