...

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चंद अशआर ~
यूँ सदाक़त का पैरोकार है वो।
झूठ नित बोलता हज़ार है वो।

जो गुनहगार दरअसल में था,
बन गया साहिब ए क़िरदार है वो।

दिल ए नादां को कैसे समझाऊं,
अब रक़ीबों का तरफ़दार है वो।

तीर जिसने चलाया पीछे से,
क्या बताऊँ कि मेरा यार है वो।

कैसे मिल पाएगी उसे मंज़िल,
ख़ुद अपनी राह की दीवार है वो।

बोलकर सच कमा लिये दुश्मन,
हो रहा देखो संगसार है वो।

बात कितनी भी गहरी आप कहें,
समझ न आये तो बेकार है वो।
















© इन्दु