परिभाषा प्रेम की
प्रेम की परिभाषा यूँ है मेरी
कि मिलन जिस्मों का नहीं,
वरन मिलना दिलों का है ज़रूरी..!
प्रेम पूर्ण होता है विश्वास से,
प्रेम होता है किसी की आस से,
हृदय के कम्पन में बार बार,
आ जाता है अपने प्रिय का नाम...!
प्रेम की होती प्रकाष्ठता इतनी गहरी,
कि प्रेम से लिखे दो लफ़्ज़ों में ही ग्रन्थ है,
प्रेम से सुने गए शब्दों में ही संसार समन्त है,
प्रेम की जुबां होती है शहद से...
कि मिलन जिस्मों का नहीं,
वरन मिलना दिलों का है ज़रूरी..!
प्रेम पूर्ण होता है विश्वास से,
प्रेम होता है किसी की आस से,
हृदय के कम्पन में बार बार,
आ जाता है अपने प्रिय का नाम...!
प्रेम की होती प्रकाष्ठता इतनी गहरी,
कि प्रेम से लिखे दो लफ़्ज़ों में ही ग्रन्थ है,
प्रेम से सुने गए शब्दों में ही संसार समन्त है,
प्रेम की जुबां होती है शहद से...