...

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*मजदूर हुआ मजबूर

देखो कैसी विपदा आई

शहर से गांव के लिए "मजबूर"

है मजदूर मेरा भाई.....



गया रोजगार, हुआ बेरोजगार,

पटरी पर कई हजारों मील,

चलने को बेबस है मेरा

यह भाई, वक्त ने कैसी आंधी चलाई

मजबूर है मेरा मजदूर भाई....


हुआ हादसा उस पटरी पर

वह कैसे सोया होगा?

उन बिखरी रोटियां को देखकर,

उसके अपनों का दिल कैसे रोया होगा?


समझ नहीं आता अब क्या होगा

इस वैश्विक महामारी में भी बिना मजदूर के भारत कैसे *आत्मनिर्भर* होगा?

मजदूर है इसलिए सबसे ज्यादा मजबूर है


*सोनू अवस्थी की कलम से*


थुरल पालमपुर (कांगड़ा)

हिमाचल प्रदेश