सफरजिंदगीका
1
न अपने न गैरों के भरोसे,
सफ़र जारी है अपने पैरों के भरोसे.
2
हर शख्स सफ़र में तन्हा चल रहा है,
कहने को साथ काफिला चल रहा है.
रोशनी के लिए बाती जला करती है,
लोग कहते हैं दिया रोशनी कर रहा है.
लोग जीते नहीं अपने न गैरों के खातिर,
जिन्हें अपना समझता वो उनके लिए जी मर रहा है.
3
माना जिंदगी की राह कच्ची है,
अजनबी भीड़ से तन्हाई अच्छी है.
न अपने न गैरों के भरोसे,
सफ़र जारी है अपने पैरों के भरोसे.
2
हर शख्स सफ़र में तन्हा चल रहा है,
कहने को साथ काफिला चल रहा है.
रोशनी के लिए बाती जला करती है,
लोग कहते हैं दिया रोशनी कर रहा है.
लोग जीते नहीं अपने न गैरों के खातिर,
जिन्हें अपना समझता वो उनके लिए जी मर रहा है.
3
माना जिंदगी की राह कच्ची है,
अजनबी भीड़ से तन्हाई अच्छी है.
Related Stories