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मित्रता
मित्रता भी बड़ी साधना है

वास्तव में मित्र भाव मनुष्य का मूल स्वभाव है। परंतु समय के खेल निराले हैं। अचरज है कि कलयुग में नेचरल रूप से मित्रवत भाव भी की स्थिति का होना एक साधना का विषय बन गया है। चारों युगों में जो भी परिवर्तन हुए हैं वे मानवीय और प्राकृतिक दोनों प्रकार के हुए हैं। मानवीय परिवर्तनों में सबसे बड़ा परिवर्तन मनुष्य की भावनाओं का हुआ है। भावनाओं के परिवर्तन के बाद ही विचार के तल पर भी परिवर्तन होते हैं। भावनाएं सीधे सीधे प्रभाव डालती हैं। मित्रवत भावनाओं के संबंध का विषय ऐसा है जिसमें लौकिक और अलौकिक संबंधों का होना अनिवार्य नहीं होता है। यह मित्रवत सम्बंध अलग तल (लेवल) पर काम करता है। असल में यह अनजाने और निष्प्रयोजन रूप से काम करता है।

जैसे जैसे मनुष्य के जेहन में उपयोगितावाद की भावना की अतिश्य होती गई है, ठीक वैसे वैसे ही...