साक़ी
दे हुक्म चाहिए क्या हाजिर गुलाम है
तौबा ये मोहब्बत में गज़ब का निज़ाम है
हर रोज़ मोहब्बत का ना रोना सुनाओ तुम
इर्शाद करो गर कोई ताज़ा कलाम है
तशरीफ लाते हैं तेरी महफिल में दिवाने
उस बेवफा की याद दिलाना हराम हैं
कहते हैं ...
तौबा ये मोहब्बत में गज़ब का निज़ाम है
हर रोज़ मोहब्बत का ना रोना सुनाओ तुम
इर्शाद करो गर कोई ताज़ा कलाम है
तशरीफ लाते हैं तेरी महफिल में दिवाने
उस बेवफा की याद दिलाना हराम हैं
कहते हैं ...