...

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कुछ लफ्ज
उन्होंने पूछा चोट गहरी लगती है :-

मत पूछो ये निशां ,
कैसे करूंगी ब्यां,
रुक जाती है जुबां ,
उनके सामने ।

बहुत दर्द हैं दिये ,
हम घुट घुट कर भी जिएं ,
हमने आसूं भी पिएं ,
यारा हर शाम में ।

कैसे कह दें बेगाना ,
जिनको अपना है माना ,
रोक देता है जमाना ,
हमें अन्जाम से ।

वो नहीं हैं हमारे ,
जिनके जीना था सहारे ,
हम खड़े हैं किनारे ,
हो के बे -आराम से ।

बहुत लिखा तेरे बारे ,
गवाह हैं ये तारे ,
हम हैं हीं किस्तम मारे ,
यारा अब माफ कर दे ।
यारा अब माफ कर दे ।

R. Kaur Ramgarhia