बरसती रहे ये बारिश
बारिश की फुहारें
मौसम की मस्ती
देह के आंगन में उतर
मन को महका रहीं हैं !
मन का मयूर
नाचने को उद्दृत
दिल हो रहा है
बादल की भांति बावला !
आसमान से जब
बरसती हैं बूंदे घनघोर
नेह बरसता है ज्यों अपार !
नर और मादा तो क्या
समूची सृष्टि ही
हो जाती है दीवानी !
धरती की हरेक चीज़
जीवित या निर्जीव
अपना आलस छोड़
चुस्त हो जाती है !
आदमी के भीतर
दरअसल...
मौसम की मस्ती
देह के आंगन में उतर
मन को महका रहीं हैं !
मन का मयूर
नाचने को उद्दृत
दिल हो रहा है
बादल की भांति बावला !
आसमान से जब
बरसती हैं बूंदे घनघोर
नेह बरसता है ज्यों अपार !
नर और मादा तो क्या
समूची सृष्टि ही
हो जाती है दीवानी !
धरती की हरेक चीज़
जीवित या निर्जीव
अपना आलस छोड़
चुस्त हो जाती है !
आदमी के भीतर
दरअसल...