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स्वीकार,,,,
राधा राणा की कलम से ✍️
#स्वीकार
अगर -मगर कुछ तो कहा होगा?
उसने स्वीकार कुछ तो किया होगा?
ऐसे ही कहा जुड़ते है रिश्ते,
उसने हाथों में हाथ दिया होगा।
देखकर कौन कहेगा यह समन्दर,
किसी रोज इक दरिया रहा होगा।
किसने सोचा था किसी रोज तुमसे,
जो बस तुम्हारा है, जुदा होगा।
शक्ल से उसकी यह लगा ही नहीं,
वह शख्स इतना भी बेवफ़ा होगा।
क्या तुमने मुड़के कभी देखा उसको,
वक्त वहां थोड़ा तो रुका होगा।
खाई गर पत्थर की चोट उसने बहुत,
वह दरख़्त फलों से झुका होगा।
#स्वीकार
अगर -मगर कुछ तो कहा होगा?
उसने स्वीकार कुछ तो किया होगा?
ऐसे ही कहा जुड़ते है रिश्ते,
उसने हाथों में हाथ दिया होगा।
देखकर कौन कहेगा यह समन्दर,
किसी रोज इक दरिया रहा होगा।
किसने सोचा था किसी रोज तुमसे,
जो बस तुम्हारा है, जुदा होगा।
शक्ल से उसकी यह लगा ही नहीं,
वह शख्स इतना भी बेवफ़ा होगा।
क्या तुमने मुड़के कभी देखा उसको,
वक्त वहां थोड़ा तो रुका होगा।
खाई गर पत्थर की चोट उसने बहुत,
वह दरख़्त फलों से झुका होगा।
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