...

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गुमराह जिंदगी
किलकारियाँ गुँजी थी जब,
संगीत बन के आँगन में |
मदहोश हो गए थे सब,
कमरबंद की रुनझून में |

जब पहली पुकार उसकी,
संसार को समेट लिया |
माँ वो अदभुत शब्द है,
जो था दिलों को जीत लिया |

जब पिता की गोद में,
जा बैठा था वो कलम लिए |
उस वक्त पिता ने स्वप्न में,
क्या क्या उसे बना लिया |

घर छोड़ कर निकला था वो,
उम्मीद ये दिये हुए |
आऊँगा घर लौट के,
हर स्वप्न को पुरे किए |

जब दोस्तों के संग वो,
अपनी ही धून मे मस्त हो |
स्वप्नों को था भुला दिया,
उम्मीद वो उड़ा दिया |

जब बूराइयों के पाश में,
फसता वो था चला गया |
तब स्वप्न उसने पिता के,
मिट्टी मे था मिला दिया |

जब होश में आया था वो,
दोस्तों का साथ खो |
तब आइ याद थी उसे,
माता पिता के आस की |

माता पिता के स्वप्न को,
साकार करने जब चला |
आगे भी जीत पाने की,
आशीश वो लिए चला |
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