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सागर
कर रहा भारत के चरणों का जो वंदन विशेष
वही जलजीवन पालनकर्ता अद्भुत अनुपम रत्नेश
वह जो राम का सेवक है, असंख्य जीव-स्वामी भी
जिसमे घनघोर गर्जन है, वरन् शीतल हितकामी भी
वैसे तो यह सारे संसार का अवशेष क्रोध पिए
फिर भी 'प्रसाद' की 'कामायनी' का सौंदर्य बोध लिए
ऐसे महान जल-अचंभे से फिर क्यों न हो विस्मय
उतार देता हठीला नशा चाहे जो भी रहा हो मय ।

खेल रही हैं मछलियाँ जिसमे खेल बचपन के
और घटित हो रहे दृश्य रक्त तड़पन के
पवन से मित्रता कर जो जहाज़ चलाता है
इन दिलेरों का रास्ता खुदा खुद बनाता है
ज्वालामुखी उदर में, अपितु शील-स्वभाव धारी
है सामर्थ्य जिसमे बनने का...