अनकही बातें खुद से किए है सारे...
मुझमें सदियां बीती है
कई रातें जगी और दिन सोई है
दिन गुज़रे लम्हें ठहर गए
मुझमें ख्याल सारे रह गए
खलिश है रंजिश है
तेरे न होने के एहसास से
अब जो रूह बेचैन है
दूरी है पर ये कैसी मजबूरी है
तुझसे जो कहना है
वो बात मुझमें खल रही है
पहले एहसास ऐसा नहीं था
तुझको लेकर सोच में...
कई रातें जगी और दिन सोई है
दिन गुज़रे लम्हें ठहर गए
मुझमें ख्याल सारे रह गए
खलिश है रंजिश है
तेरे न होने के एहसास से
अब जो रूह बेचैन है
दूरी है पर ये कैसी मजबूरी है
तुझसे जो कहना है
वो बात मुझमें खल रही है
पहले एहसास ऐसा नहीं था
तुझको लेकर सोच में...