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ज़िन्दगी कि शाम
ज़िन्दगी कि शाम
अभी तो तेरी ज़िन्दगी कि बस शाम हुई है,
बहुत हंसीन है ये लम्हें, ख़ुशी ख़ुशी तू ग़ुज़ार ले ।
बेईमान मौसम का क्या यूँही आता जाता रहता है,
मौजूदा मौसम का लुत्फ़, ज़िन्दगी में अपनी तू उतार ले ।
ज़माना कभी खुश न होगा तेरी तरक़्क़ी को देखकर,
ख़ुशियाँ बाटकर दुनिया को, अपने ग़मो को तू सँवार ले ।
जो कुछ भी दिया है खुदावंद ने, तेरे दामन में "रवि",
उलझनों को अपनी, परवरदिगार कि हूज़ूरी में तू डाल दे ।
पेश्तर इसके के चिराग़ गुल हो जाये ज़िन्दगी का तेरी,
मुआफी मांग कर अपने गुनाहों का इकरार तू कर ले ।
राकेश जैकब "रवि"
अभी तो तेरी ज़िन्दगी कि बस शाम हुई है,
बहुत हंसीन है ये लम्हें, ख़ुशी ख़ुशी तू ग़ुज़ार ले ।
बेईमान मौसम का क्या यूँही आता जाता रहता है,
मौजूदा मौसम का लुत्फ़, ज़िन्दगी में अपनी तू उतार ले ।
ज़माना कभी खुश न होगा तेरी तरक़्क़ी को देखकर,
ख़ुशियाँ बाटकर दुनिया को, अपने ग़मो को तू सँवार ले ।
जो कुछ भी दिया है खुदावंद ने, तेरे दामन में "रवि",
उलझनों को अपनी, परवरदिगार कि हूज़ूरी में तू डाल दे ।
पेश्तर इसके के चिराग़ गुल हो जाये ज़िन्दगी का तेरी,
मुआफी मांग कर अपने गुनाहों का इकरार तू कर ले ।
राकेश जैकब "रवि"
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