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एक बात अधूरी थी कबसे मै आज वो कहने आया हूँ...By :- Sagar Raj Gupta "श्रृंगार रस कवि "
जो दर्द दिया था मुझे तुमने मै आज वो सहने आया हूँ।
एक बात अधूरी थी कबसे मै आज वो कहने आया हूँ।

देख मुझे तुम जब-जब भी नज़रों को निचे झुकाती थी,
वो ज्येष्ठ मास की धूप भी माघ की जाड़ बन जाती थी,
मै मस्त-मौला पागल बनूँ, ज़ब तुम बालों में गजरा लगाती थी,
जिसे पता न था कुछ भी तुम उसे भी प्यार सिखाती थी।
पता भी नहीं है की दिल अभी खाली है तेरा, फिर भी मै वहाँ रहने आया हूँ...
एक बात अधूरी थी कबसे मै आज वो कहने आया हूँ।

ज़ब तुम काली साड़ी पहन मेरे बगल से गुजरा करती थी,
साफ आसमान में भी रिमझिम बारिश बरसा करती थी,
तेरी पाजेब की खनक एक संगीत की धुन सुनाती थी,
मेरे मन और मस्तिष्क में नई-नई शायरी और ग़ज़ल...