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आस और विश्वास
जनमानस कल्याण में जन-जन की हो आस
धरती रुठी नफरत से, है प्रीत- भाव की प्यास,
भेद-वैमनस्य ताल में, मानव दानव होय
छल-पाप में झोला-छाप,झूठे बीज बोय
अंधकार के जाल में, हो जाग्रति का प्रकाश
कपटी खुद को खुदा कहे,करे नीच प्रयास
जल जीवन जंगल हुआ,मंगल कहाँ से होय
मैना-पपीहा-कोयली, अब कम दिखै अब मोय
धरती रुठी नफरत से, है प्रीत- भाव की प्यास,
भेद-वैमनस्य ताल में, मानव दानव होय
छल-पाप में झोला-छाप,झूठे बीज बोय
अंधकार के जाल में, हो जाग्रति का प्रकाश
कपटी खुद को खुदा कहे,करे नीच प्रयास
जल जीवन जंगल हुआ,मंगल कहाँ से होय
मैना-पपीहा-कोयली, अब कम दिखै अब मोय
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