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मेरे पुरूषोत्तम श्री राम
मेरे पुरूषोत्तम श्री राम

सिंधू से गहरी आंखें तेरी
मनमोहक मुस्कान है
शर चाप तेरे हस्त विराजे, अयोध्या ही पहचान है।।

हनुमंत तेरे चरण पखारे
लखन दाएं हाथ है
भरत-शत्रुघ्न चंवर झुलाते, बाएं हाथ सीता मात हैं।।
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