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क्यूं मायूस हो
क्यूं मायूस हो
जिंदगी शाम की तरह मुस्कुराओ
फुर्सत मिले तो कभी
अपने से मिलने अपने पास आओ

रौनक ए बाहर खिलेंगी
मन की दीप जलाओ
आसिया अपनी सजेगी
हंसते मुस्कुराते गाते जाओ

गगन अंबर हलहलाएंगे
उपवन सजाओं
भोर की आभा किरण निकल आएंगी
पहरीन चमचमाती रूप दिखाओ

अलबेला मस्त बेला स्वागत करेगा
फूल की डाली भंवरे से मिल जाओं
मंदिर से घर लगेंगे
पावन पांव चलते-चलते आओ

खिली है घुप
परवाज पवन को उड़ाओ
मन की दुविधा मिट...