...

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हिसाब होगा...
एक दिन हिसाब जरूर होगा उन आंसुओ का....
जो मैने बेवजह बहाए थे,
मेरा कल मुझे पूछेगा क्या वो अब भी तेरे साथ हैं जो पहले आएं थें?
मेरे आंसू मुझे पूछेंगे.. उन लोगो के बोलने में आखिर मेरा कसूर क्या था?
मोतियों सी चमकदार मैं क्या बहना मेरा दस्तूर था?
मेरी धुंधली लाल हुई आंखे मुझे कोसेंगी,
क्या वे फिर मेरी ओर देखेंगी?
बेकसूर मेरा दिल जिसे मैंने दुखाया...
वो पूछेगा तुझे पता है मैं कितना कराहा?
हिसाब जरूर होगा मेरे उन न सिमटे हुए जज्बातों का,
पूछेंगे वे मुझे क्यों तूने मुझे यू जला दिया क्या कसूर था भावनाओं का ?
खड़ा होगा एक जंजाल सवालों का...
खुद की कातिल मैं क्यों हुई पूछेगा मेरा वजूद मुझसे,
क्या इतनी कमजोर बेहाल है तू जो एक छोटीसी जिंदगी नही संभली तुझसे?

दिमाग का तो क्या ही कहना,
उसने छोड़ दिया था सोचना समझना...
भूल गया था वो अपना काम करना..
क्या ही वो सवाल करता,
उसके पास तो कुछ बचा ही नहीं!

मैंने रोना चाहा इन सवालों को सुनकर,
आंसू निकले नही...
पत्थर हो गए थे वे सूखकर...!
आंखों को फिर देखना चाहती थी,
अपने दिलको समझना चाहती थी..
लेकिन बैठा था वो मुझसे रूठकर,
भावनाओं को समेटना चाहा तो पता चला..
बिखर गई हैं वो टूटकर...!
#Challenge
©वंशिका चौबे
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