15 views
काव्य-सर्जक।
काव्य-सर्जक-
जब कभी संसार मस्तक भार होता मनुज व्यथा का
तब उतारे निमित्त दुजा कवि बिन कोई नहीं।
प्रबोधिनी की स्याहि से कागजों पर पथ लिखें
जैसे श्यामल पर्दो पर प्रकाश दिखे।
उसके अनुभूति की सत्य तारक रचना
बहता उदक अविरल बनकर मधुर झरना।
आगे रूप सरीता का जब बहता
तटों पर मुर्झा सब रूठों की प्यास बुझाता।
ऐसा गोस्वामी अंतर मन जब गीत गाता
दुष्टों का सब मद जल जाता।
@kamal
#writcowriter
#WritcoQuote
जब कभी संसार मस्तक भार होता मनुज व्यथा का
तब उतारे निमित्त दुजा कवि बिन कोई नहीं।
प्रबोधिनी की स्याहि से कागजों पर पथ लिखें
जैसे श्यामल पर्दो पर प्रकाश दिखे।
उसके अनुभूति की सत्य तारक रचना
बहता उदक अविरल बनकर मधुर झरना।
आगे रूप सरीता का जब बहता
तटों पर मुर्झा सब रूठों की प्यास बुझाता।
ऐसा गोस्वामी अंतर मन जब गीत गाता
दुष्टों का सब मद जल जाता।
@kamal
#writcowriter
#WritcoQuote
Related Stories
11 Likes
0
Comments
11 Likes
0
Comments