...

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⛅ किरण ⛅
जैसे अनजाने में
ही 'छन्न' से
नवयौवना की पाजेब
खनक उठती है
यूं ही 'आहिस्ता' से मेरे
आंगन में, भोर में एक
' किरण 'उतरती है

कुछ शरमाई सी,
सिमटी सी, सकुचाई सी...
झुकी हुई निगाहों से
कभी इधर कभी
उधर तकती है
बढ़ती है -ठिठकती है
किस ओर चलुं
शायद यही विचरती है

गालों पर रक्तिम
आभा उतरती है
मुड -मुडकर
'दिनकर' की ओर
तकती है
वो मंद मंद
मुस्कुराते हैं
आंखों ही आंखों में
ढांढस बंधाते हैं
साथ के लिए कुछ
और 'किरण'भिजवाते हैं

हवा का एक झोंका
आता है
कुछ बतियाता है
फिर आगे बढ़ जाता है

आंगन में खिली
एक कली
किरण को देख
मुस्कुराती है
कुछ और खिल
जाती है

अब कुछ ढांढस
बंधता है
माहौल कुछ
पहचाना -पहचानता
सा लगने लगता है
किरण कमरों की
ओर बढ़ती है
धीरे-धीरे पुरे घर
में पसरती है

अब वह 'किरण ' नहीं
रही 'धुप 'हो गई है
घर के हर कोने से उसकी
दोस्ती खुब हो गयी है
यह घर अब उसका और
वह इस घर की है

धुप का सानिध्य पा,
जीवन जग सा जाता है
और इस तरह से
मेरे घर में फिर
एक नया दिन
आता है !

- स्वरचित, ०४.११.२०२० ॐ साईं राम.
© aum 'sai'