...

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चाकरी
चाकरी सरकार की जिंदगी लेे गई
लौटकर आया तो खो चुका था सब
आहिस्ते - आहिस्ते मिट चुका था सब
किस्तों में पूरी जिंदगी लेे गई
चाकरी सरकार की जिंदगी लेे गई ।

छुट्टियों को भी सहेजा
तनख्वाहों को ही समेटा
वक़्त का सिला दिया बार - बार
गुजरी सारी उम्र जार - जार
लौटकर आया तो खो चुका था सब
अब कहां ढूंढे मिले वो बहार
पुराने वो संगी - साथी वो यार
चाकरी सरकार की जिंदगी लेे गई ।

© राजू दत्ता