...

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ग़ज़ल
मेरी हर दुआ का वहाँ असर क्यूँ नहीं जाता
वो है मेरा बख्त तो संवर क्यूँ नहीं जाता

न तू है न वो वक़्त है और न ही वो जिंदगी है
नक्श तेरा मेरे जहन से उतर क्यूँ नहीं जाता

दर्द का मेरे दिल से इक उम्र का नाता है
सीने का ये दर्द हद से गुज़र क्यूँ नहीं जाता

वैसे तो मैंने कभी कुछ चाहा नहीं खुदा से
हूँ उसकी तख़्लीक़ तो निखर क्यूँ नहीं जाता

अब ना कोई आस मेरी ना कोई ख्वाब मेरा
जिन्दा नहीं हूँ मैं तो फिर मर क्यूँ नहीं जाता

दिन भर की बेबसी और रातों के रत जागे
जो बीता है मुझ पे वो तुझ पे गुज़र क्यूँ नहीं जाता

मंजिल से आगे हूँ और नहीं है ये सफर मेरा
इस अनजान कश्ती से मैं उतर क्यों नहीं जाता
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बहर : बहर-ए-ज़मज़मा मुतदारिक मुसद्दस मुज़ाफ़
अरकान : फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन
तक़्तीअ : 22 22 22 22 22 22
© 'क़फ़स'

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