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"तुम्हारी यादें और मेरी शिकायत"
© Shivani Srivastava
इक शिकायत है तुमसे, सुनना चाहो तो सुन लो इक बार..
अब तो ख़ामोश हूं मैं, नहीं कर रही हूं भावों का इज़हार।
अब तो नहीं करना पड़ता तुम्हें समय देने के लिए विचार..
ना ही मैं कहती हूं कि तुम्हारे बोलने का भी किया इंतज़ार।
मेरे भाव तुम्हारे बंधन नहीं,ना ही कभी जताते ये अधिकार..
स्वेच्छा से ही जुड़ जाते हैं ये,स्वेच्छा से ही हुए हैं तार-तार।
सिमट गई हूं तुम्हारी दुनिया से दूर,लेकर अपना मैं व्यवहार.
शिक़ायत है कि तुम समेटते क्यूं नहीं अपनी यादों का संसार।
सुन ही लिया है तो बताओ,ये इक शिकायत मिटाओगे क्या.
तुम्हारी यादों से पहले था जो,मेरा वो क़िरदार लौटाओगे क्या।
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