...

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कलयुग
शहर की आबोहवा दुरुस्त नहीं है अब
लोगों ने बलवा अच्छे से सीख लिया है

धर्म ही तो मोक्ष की मंजिल का द्वार था
धर्मियों ने लगता है, ये द्वार तोड़ दिया है

बार-बार लेंगें जन्म और यहीं लड़ेंगे सब
पुनर्जन्म से पक्का रिश्ता जोड़ लिया है

गधे घोड़े कुत्ते बिल्ली सांप बिच्छु सब बनेगें
इंसान होकर भी तो यही सब बने फिरते हैं

पहले पुण्य से सुकून था अब पाप से है शांति
लूट खसौट बदला बर्बादी ही लाएगी अशांति

पाप वृत्ति में लिप्त मन खुद पापी हो जाएगा
घर जला कर किसी का कैसे सुकून आएगा

खलनायक को नायक माना जा रहा है जब
सीधे सच्चे लोगों को हम क्या समझें हैं अब

दुनिया में इंसानियत की क्या ये पहचान है?
कलयुग शायद इसीलिए इतना बदनाम है।
© PJ Singh