...

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समझौता कहाँ तक करती
और समझौता कहाँ तक करती,
इसलिए ख़ामोश हो गई.....!
किस्मत से और कहाँ तक लड़ती,
इसलिए तुझसे बिछड़ गई.....!

तेरी पकड़ ही कमज़ोर थी शायद,
इसलिए हाथ मेरे छूट गए...!
सारे सपने मेरे कांच के थे शायद,
इसलिए खन से टूट गए.....!

और समझौता कहां तक करती,
इसलिए ख़ामोश हो गई.....!
एहसास जीने के मकसद बन गए
इसलिए तुझ बिन जी गई....!
©हेमा