चली आओ
मैं जानता हूं तुम्हारे यह अल्पविराम
युगों की प्यास खुद में समेटे ,
धरती के सूखते जलाशयों से
प्रतीक्षारत ,
हैं आतुर , खुद को, अपनी सीमाओं को
मिटा देने को,
समा जाने को उस उपवन के दिव्यानंद में
जहां बहती है सदा रसधार प्रेम की और
जिसका उद्घोष मैं करता हूं आज
सम्मुख...
युगों की प्यास खुद में समेटे ,
धरती के सूखते जलाशयों से
प्रतीक्षारत ,
हैं आतुर , खुद को, अपनी सीमाओं को
मिटा देने को,
समा जाने को उस उपवन के दिव्यानंद में
जहां बहती है सदा रसधार प्रेम की और
जिसका उद्घोष मैं करता हूं आज
सम्मुख...