...

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नित नवीन प्रगति करो...
*नित नवीन प्रगति करो*
*जैसे आ जाते हैं बसंत में,*
*फूल विविध प्रकार के...*

*बहुत सारे छोटे बड़े*
*देशों को ही मिलाकर तो,*
*विश्व बनता है...*

*टिमटिमाना बुरा नहीं,*
*यह हमने सीखा बचपन से ही,*
*जलते-बुझते से असंख्य तारों से...*

*शोर करते रहना भी अच्छा होता है*
*कल-कल , छल-छल ध्वनि करते,*
*झरने हमेशा यही कहते है...*

*कभी-कभी तूफान भी भले*
*ले आते हैं अपने साथ,*
*सागर में छुपे मोती...*

*ज्वालामुखी भी शांत होकर*
*बन जाते हैं बन जाते हैं,*
*समाज का पालना...*

*असंख्य गुणों से परिपूर्ण*
*प्रकृति से जुड़े रहना,*
*बना देता है जड़ को भी जीवन...*

*और उपलब्धियों की उपज तो*
*इतिहास के पन्नों पर भी,*
*हरी-भरी रहती है सहस्त्रों शताब्दियों तक...*
*स्वरचित-सोनाली तिवारी"दीपशिखा"*
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