...

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जिम्मेदार इंसान
राह में मुश्किलों के चलते-चलते,
हर लम्हा हर नफ़स सँभलते सँभलते ,
शौक से हसरतो का पीछा करते करते,
गुजर जाता है यूँही चलते चलते ।

शाम की तन्हाई में जब घर आता है,
जिम्मेदारीयों के बोझ से सो नहीं पाता है,
बस तसलियों से दिल बहलाता है ,
इक तलाश को पूरी करने में बेकरार हो जाता है ।

दिल के सारे अरमान अपनों पे लुटाता है,
खुद है खुद को भी भुल जाता है ,
हाले दिल कोई पूछने नहीं आता है,
मिला है जिस पर सबर कर जाता है।

जब आइने से नज़र मिलाता है,
खुद ही खुद में खो जाता है,
जिंदगी बोझ नहीं है खुद को समझाता है,
इंसान बस हसरतो से खेलता जाता है ।


© 👍पवन के अल्फाज़ 👍