...

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रणवीर
बाहर से तो शान्त दिखता
अन्दर बेहद शोर है
अभी तो रण में कूद पड़ा हूँ
युद्ध अभी कुछ और है
जिन्दगी कि धार से विपरीत
बहना जानता हूँ
कर्मवीर हूँ समर का
मैं युद्ध करना जानता हूँ
जानता हूँ शास्त्र को मैं
शस्त्र को पहचानता हूँ
धरती का मैं पुत्र हूँ
माँ का स्नेह जानता हूँ
माँ मेरी करूणा मयी है
माँ मेरी ममतामयी है
जितनी भी कठिनाई आए
रण में होगी शस्त्र बर्षा
शस्त्रु कितने ही सुभट हो
सहस्त्र सेना और विकट हो
रण से पीछे ना हटूगा
अग्नि से भी न मिटूगा
धार तीखी तलवार होगी
नित शोणित धार होती
आहुति दे युद्ध में माँ की
सदा जयकार होगी
संघर्ष करता ही रहूगा
जीत या फिर हार होगी
वह मुझे स्वीकार होगी ।




© Satyam Dubey