late night
जब काली अधेरी रातों मे
हम कुछ अकेले से होते है
जब सन्नाटा मे बैठे हम
किताबों मे जूझे होते है
तब उनकी बहुत सी बाते
हमे फिर याद आ जाती है
साथ देने को फिर रातों मे
वो हाथ थामने आती है
जब थक कर आखे मेरी
यू झुक जरा सी जाती है
जब कलम मेरे हाथों से
जरा लड़खड़ा...
हम कुछ अकेले से होते है
जब सन्नाटा मे बैठे हम
किताबों मे जूझे होते है
तब उनकी बहुत सी बाते
हमे फिर याद आ जाती है
साथ देने को फिर रातों मे
वो हाथ थामने आती है
जब थक कर आखे मेरी
यू झुक जरा सी जाती है
जब कलम मेरे हाथों से
जरा लड़खड़ा...