...

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मैं मेरा प्यार
कभी कभी सोचती हूं मैं ,
तुझे क्यों इतना सोचती हूं मैं ?
तब ,
मेरा खुद पर एक सवाल उठाती हूं ,
क्यों तुमसे इतना प्यार करती हूं मैं ?
कितने तकलीफ देते हो तुम मुझे !
कभी अपनी नजरंदाज से तो
कभी अपनी मिज़ाज से तो
कभी अपनी हरकतों से
न जाने क्यों,,!
फिर भी ,,! तेरे साथ हूं मैं ,?
एक टूटा हुआ रिश्ता को निभाती आई हूं मैं
रूठ भी जाती हूं कभी तो
तेरे एक आवाज़ से पिघल जाती हूं मैं ,,
शायद ,,! मुझसे भी ज्यादा प्यार
तुमसे करती हूं मैं !
इसीलिए ,,,आज तक मैंने तेरी हर गलतियों को नजर अंदाज़ करती आई हूं मैं
खुद के खिलाफ़ हो जाती हूं मैं ,,
शायद,,, !!