...

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संघर्ष की पतवार
संघर्ष की पतवार को, नौका बनाकर हार को
है सामना करना तुझे, राहों के हर एक वार को
लोगों की तीखी बोलियां, कुछ दुश्मनों की टोलियां
कोशिश करेंगी रोक लें, बढ़ते तेरे आधार को
बाधाएं आएंगी बहुत, हर पल लगेगा छोड़ दूं
ये रास्ता अंजान है, मैं रथ को अपने मोड़ दूं
खुद पे भरोसा भी नहीं, मंजिल तो दिखती ही नहीं
पाऊंगा कैसे लक्ष्य को, कोई आस बंधती ही नहीं
ऐसे सवालों से घिरा, हर दूसरा दिन आयेगा
हर पल अंधेरे की झलक, तू मन में अपने पाएगा
तब साथ तेरा हौसला, और फैसला देगा वही
इस राह की शुरुआत में, खुद से किया था जो कभी
पाना है तुझको आसमां, लेकर सभी को साथ में
बनना है तुझको रोशनी, लाचार की हर रात में
गांधी बने या ना बने, शेखर बने या ना बने
तू जो बने खुद का बने, सच्चाई की ज़िद पर बने
तू बन सके तो बस बने, एक आदमी सम्मान का
करुणा, दया और प्रेम का, ना झूठ के अभिमान का
इंसानियत की मूर्ति का, ना उच्चतम के भान का
आदर करे हर जीव का, सम्मान सबके मान का...
© Er. Shiv Prakash Tiwari