...

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जीवन की रेल
छुक-छुक चलती जा रही,
जीवन की यह रेल।
भिन्न भिन्न लोगों से,
करवाती है यह मेल।
अलग अलग हैं सबके कोच,
श्रेणी है सबकी अलग-अलग।
सबकी है अलग-अलग सोच,
सबकी है बोली अलग-अलग।
विचारों के जब तार हैं जुड़ते,
मिट जाती है हर कोच की दूरी
तब अपनेपन के पुष्प हैं खिलते,
और प्रेम व सौहार्द की,
खिलती है फुलवारी।

© mere alfaaz