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एक सहर ऐसा भी
#खोईशहरकीशांति
तन ढके कोई मन ढके,
कई जो सारे भूक ढके,
कई सौन्दर्य की ओर पड़े,
कई सौन्दर्य से दूर खड़े |
दाने के मोहताज सभी,
दाने की जो होड़ करें,
होत नहीं पूरी कभहु,
फिर भी बार-बार करे ||
कई मांगे प्रेम,
कई मांगे तन,
भावार्थ में अर्थ नहीं,
करत रहे अभिनन्दन |||
तू कर और में कर,
में है उलझे सब कई,
'कई' तो मात्र शब्द है बहस,
सुलझे मात्र कोई नहीं ||||
© Sarang Kapoor
तन ढके कोई मन ढके,
कई जो सारे भूक ढके,
कई सौन्दर्य की ओर पड़े,
कई सौन्दर्य से दूर खड़े |
दाने के मोहताज सभी,
दाने की जो होड़ करें,
होत नहीं पूरी कभहु,
फिर भी बार-बार करे ||
कई मांगे प्रेम,
कई मांगे तन,
भावार्थ में अर्थ नहीं,
करत रहे अभिनन्दन |||
तू कर और में कर,
में है उलझे सब कई,
'कई' तो मात्र शब्द है बहस,
सुलझे मात्र कोई नहीं ||||
© Sarang Kapoor
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