...

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वो जाने क्यूँ नहीं आया.!
खिड़की खोल कर बैठी हूँ इंतज़ार में कबसे
चाँद अब तक तेरे क़िस्से सुनाने क्यूँ नहीं आया

मेरी ख़ाली कलाई पूछ रही है मुझसे आज
वो अब तक चूड़ियाँ लेकर जाने क्यूँ नहीं आया

कहता था हर दम कि तुम आईना हो मेरा
फिर मुझको मेरा चेहरा‌ दिखाने क्यूँ नहीं आया

वो जो दावे करता था इश्क़ की बाज़ियाँ जीत जाने का
मैं ख़ुद को हार बैठी हूँ फिर मुझे हराने क्यूँ नहीं आया