...

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जब मैं अकेली थी
जब मैं दर्द मे थी तो अकेली थी,
प्यार के बोल को तरस रही थी,

कुछ लोग पास से गुजर गए ,
कुछ आये स्वार्थ पूरा कर गए,

हिम्मत करके गुजारे थे वो पल,
बीत गया समय बनके एक पल,

हो गया था दिल मेरा पत्थर का,
नही रहा बसेरा भावनाओं का,

पल-पल करते दिन बीतते गए ,
धीरे-धीरे मेरे भी दिन बदलते गए,

दिन बदले लोग साथ आने लगे,
खुशियों के पल भीड़ जुटाने लगे।
© रीवा