...

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मनुष्यता पर निज कलंक हो....
इस देस में लाडो,
मनुष्य नहीं पशु बसते हैं
पशुओं में भी पशुतत्व धर्म होता है
सिंह दूसरे सिंहनी को निर्वस्त्र नहीं करता है
पाप कर्म , साथ उसके कोई दुष्कर्म नहीं करता है

सियार किसी और समाज के सियारन को दंड नहीं देता है
वह पशु हो फिर भी, पशुतत्व धर्म नहीं खोता है
तुम मनुज नहीं मनुज की मनुजता पर एक कलंक हो
धर्म की , देश की तुम आसुरी प्रवृत्ति हो

इस देस में लाडो,
अब मनुष्य नहीं पशु बसते हैं

नारी की ही नहीं अपितु
देश - तिरंगे को अपमानित किया है
एक धर्म , एक देश को नहीं अपितु
एक पूरी जाति को अपमानित किया है

तुम कहते तुम रक्षक हो, धर्म - जाति के नायक हो
एक नायक , दूसरे नायक को निर्वस्त्र नहीं करता है
पाप कर्म , साथ उसके कोई दुष्कर्म नहीं करता है

तुम मनुष्य नहीं मनुष्य की मनुष्यता पर निज कलंक हो
धर्म की और देश की तुम आसुरी प्रवृत्ति हो
© ✍️ अभि'