...

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तुम ही सब हो...
शोरशराबे वाली इस जिंदगी बीच
तुम सुकून का एक पल हो।
थोड़ा थम के तुझमें कई जिंदगियां
जी लेता हूं।

कांटों से भरे घने जंगल के बीच
तालाब में खिला कमल हो।
कांटों के घाव का दर्द भुलाकर
तुझे थोड़ा छू लेता हूं।

ग्रीष्म की कड़ी दोपहरी के बीच
मिला वो शीतल जल का प्याला हो।
रूह तक लगी प्यास को
तूझसे घूंट घूंट बुझाता हूं।

कड़ी तड़पाती भूख के बीच
मिला रोटी का वो निवाला हो।
तुझे गलें से उतारकर
अंतर तक अमृत से भर जाता हूं।

करवटें बदलती रातों के बीच
कानों में गूंजती मां को लोरी हो।
मन की थकान को तुझसे सहलाकर
खुद को सुकून से सुलाता हूं।

कड़कड़ाती सर्द रात के बीच
कोने में जलती वो आग हो।
जमे हुए मेरे एहसासों के लिए
तुझसे हल्के हल्के ऊष्मा लेता हूं।

अनंत लगते इन रास्तों के बीच
सामने दिखती मंज़िल हो।
थके हुए मेरे पांवों को
तुझे मिलाने को उम्मीद दिखाकर
चलने का हौंसला देता हूं।

निराशाओं के भंवर में
फसी ज़िंदगी के बीच
कुबूल हुई दुआ हो।
टूटे हुए मेरे सपनों को
तेरे पंखों से उड़ान देता हूं।

© jWalant
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