...

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" बिछड़े "
" बिछड़े "

बिछड़े हैं ऐसे हम खुद ही से के
खुद से मिल ने हमें ज़माने लगे हैं..!

बेखुदी में इस तरह हुए हम खुद के सितमगर..
यह समझने में भी हमें कई ज़माने
लगे हैं..!

बिखरे हुए हैं हम ऐसे खुद में
सिमटने में इक़ अर्से गुजरने
लगे हैं..!

हालात ने बेइंतहाई से हमें तोड़ा
और फिर मरोड़ा फिर भी इनसे
जुदा होने में हमने इक़ उम्र गुजारी है..
लेकिन लगता है ऐसे जैसे कुछ पन्ने भुगतान के अभी भी खाली हैं..!

ऊम्मींद का सफ़र मेरे जीवन का जैसे..
बहता दरिया मानो ठहरता ही नहीं
बल्कि कल-कल में गुजरता जाए..!
हलचलें दिल की और गहरी छाप
छोड़तीं जाएँ..!

इम्तिहान की ईमारत इतनी लंबी है..
मानो कि चलते हुए ही अचानक छूट जाएगीं सब्र का साथ..!

जमाने की उल्फ़त भरी राहों पर निरंतर..
ख़ामोशी से चले जा रहे हैं मगर दूर है अभी मंजिल मेरी..
पर खुशियों को दस्तक देने में हमें देखो ना इक़ ज़माने लगे हैं..!

अपनी बेशक़ीमती आरजुओं को पिरोने में ढ़ल जाया करती हैं जाने कितनी शामें..
मगर एहसासों की लड़ियों से दिल को..
बांधे रखने में हमें कई ज़माने लगे हैं..!

बिछड़े हैं ऐसे हम खुद ही से के खुद ही से मिल ने हमें ज़माने लगे हैं..!

🥀 teres@lways 🥀