मैं चाहती हूँ
मैं चाहती हूँ कि अबकी जब हम मिलें,
तो बस मिले नहीं, बल्कि उस मुलाकात में कुछ असर रहे।
की तुम कह दो मुझसे मेरे साथ चलो,
अब तुम मेरे ही साथ रहोगी, क्योंकि मेरी हो तुम।
और तुम्हारी आवाज़ में ठहराव हो,
घबराहट या डर जैसा कुछ ना हो, तुम्हारी ज़ुबान कहते हुए
लड़खड़ाए नहीं।
तुम्हारी मुस्कुराहट से मैं सँवर जाऊँ, और श्रृंगार भी मेरा सिर्फ...
तो बस मिले नहीं, बल्कि उस मुलाकात में कुछ असर रहे।
की तुम कह दो मुझसे मेरे साथ चलो,
अब तुम मेरे ही साथ रहोगी, क्योंकि मेरी हो तुम।
और तुम्हारी आवाज़ में ठहराव हो,
घबराहट या डर जैसा कुछ ना हो, तुम्हारी ज़ुबान कहते हुए
लड़खड़ाए नहीं।
तुम्हारी मुस्कुराहट से मैं सँवर जाऊँ, और श्रृंगार भी मेरा सिर्फ...