...

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मैं चाहती हूँ
मैं चाहती हूँ कि अबकी जब हम मिलें,
तो बस मिले नहीं, बल्कि उस मुलाकात में कुछ असर रहे।
की तुम कह दो मुझसे मेरे साथ चलो,
अब तुम मेरे ही साथ रहोगी, क्योंकि मेरी हो तुम।

और तुम्हारी आवाज़ में ठहराव हो,
घबराहट या डर जैसा कुछ ना हो, तुम्हारी ज़ुबान कहते हुए
लड़खड़ाए नहीं।

तुम्हारी मुस्कुराहट से मैं सँवर जाऊँ, और श्रृंगार भी मेरा सिर्फ तुमसे हो।
तुम मुझे देखो तो बस देखो नहीं, बल्कि झांक लो मेरी आँखों में, और महसूस करो हर एक दर्द को मेरे।

मैं चाहती हूँ कि अबकी जब मिले हम,
तो तुम्हारी आँखों में नज़र आने वाला प्यार , होठों तक आ जाए..
और मैं तुम्हें सवाली नज़रों से जब देखूँ,
तो तुम थाम कर हाथ मेरा, मुझसे कहो, कि हाँ तुम मुझसे मोहब्बत करते हो।
तुम्हें अधिकार है मुझ पर उतना ही,
जितना मैं अनजाने में तुम पर दिखाती हूँ।

की अबकी जब हम मिलें तो बस मिलें नहीं,
बल्कि उस मुलाकात से हमारे रिश्ते को एक पहचान मिले।
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