...

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कुछ तो है दरमियां.....
यूं ही नही मेरे लम्ह़ों में तुम हो
कुछ तो है दरमियां हमारे तुम्हारे
कल भी थे किस्से उन गलियों में तेरी
आज भी मशहूर हैं हमारे तुम्हारे
आंखों में नमी तो तुझको भी है
मेरी कमी तो तुझको भी है
और कयामत तो देखो क्या गज़ब है खुदा की
कि दूरिया हैं दरमियां हमारे तुम्हारे
और शिकवा करूं तो करूं भी क्या किसी से
कि आड़े हैं मजबूरियां हमारे तुम्हारे
कल भी था जोखिम़ तुझसे मोहब्बत में
और आज भी हैं बेड़ियां हमारे तुम्हारे
अब शायद टूटेगीं वो... खुदा के ही शहर में
तब तक ....यादें ही सही दरमियां...............हमारे तुम्हारे