वो चले जब सांझ बनकर
वो चले जब सांझ बनकर।।
लहलहाती डालियां, जैसे फसल की बालियां
जा रहा यूं गात सनता, स्वाति की बूंदें गिराती।
छीन लेती है नजारे, पुष्प फीके दीखते फिर
दृश्य आया है उभर ज्यों, कल्पनाओं से उतरकर।
वो चले जब सांझ बनकर।।
इस जगत में कौन होगा, जो मेरा हृदय गला दे...
लहलहाती डालियां, जैसे फसल की बालियां
जा रहा यूं गात सनता, स्वाति की बूंदें गिराती।
छीन लेती है नजारे, पुष्प फीके दीखते फिर
दृश्य आया है उभर ज्यों, कल्पनाओं से उतरकर।
वो चले जब सांझ बनकर।।
इस जगत में कौन होगा, जो मेरा हृदय गला दे...