ग़ज़ल
छलक के आँख से तेरी शराब हो जाऊँ
नशे में डूबूँ मैं इतना कि ख़्वाब हो जाऊँ
बहार तेरे सितम की अगर रहे क़याम
लहू में रंग के अपने गुलाब हो जाऊँ
पड़ा हूँ रात की तारीकियों में पत्थर सा
लबों से चूम लो तो आफ़ताब हो...
नशे में डूबूँ मैं इतना कि ख़्वाब हो जाऊँ
बहार तेरे सितम की अगर रहे क़याम
लहू में रंग के अपने गुलाब हो जाऊँ
पड़ा हूँ रात की तारीकियों में पत्थर सा
लबों से चूम लो तो आफ़ताब हो...