...

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ग़ज़ल
छलक के आँख से तेरी शराब हो जाऊँ
नशे में डूबूँ मैं इतना कि ख़्वाब हो जाऊँ

बहार तेरे सितम की अगर रहे क़याम
लहू में रंग के अपने गुलाब हो जाऊँ

पड़ा हूँ रात की तारीकियों में पत्थर सा
लबों से चूम लो तो आफ़ताब हो जाऊँ

कभी तो आके मेरी जान मिल अकेले में
तेरे बदन पे मैं तेरा हिजाब हो जाऊँ

रहे न प्यार में कोई हिसाब ही बाक़ी
मैं तेरे इश्क़ में यूँ बेहिसाब हो जाऊँ

तू हौसला दे मेरी बेक़रार बाहों को
मैं टूट कर तेरे पहलू में ख़्वाब हो जाऊँ

वरक़-वरक़ पे मैं बिखरा पड़ा हूँ जाने-मन
मुझे समेट लो तो इक किताब हो जाऊँ


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