मजबूरी
#मजबूरी
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
घूमता है सारा जहां इसी के चारों ओर
कोई तन ढकने को कपड़े कमाने निकला है
कोई कपड़े उतार कर कमाए
दो वक्त की रोटी ये मजबूरी है
© Poeत्रीباز
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
घूमता है सारा जहां इसी के चारों ओर
कोई तन ढकने को कपड़े कमाने निकला है
कोई कपड़े उतार कर कमाए
दो वक्त की रोटी ये मजबूरी है
© Poeत्रीباز
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