जाने-दो..!
#जाने-दो..!
जाने दो जो चला गया,
मृगछालों से जो ठगा गया।
बेवक्त जो वक्ता बना गया,
न ढूंढें उसको मृगतृष्णा में
न भटको रेत के दरिया में
क्यों व्यथित होकर हिय को जलाते हो
क्यों आँसूंओं में खुद को बहाते हो
हाँ माना वचन था जीवन भर का
लगता है अब हर सपना अधूरा
चाँद भी लगता नभ में फीका फीका
रात का चूभता रहता है तुमको अंधेरा
खुशियों से तुमने है क्यों मुँह...
जाने दो जो चला गया,
मृगछालों से जो ठगा गया।
बेवक्त जो वक्ता बना गया,
न ढूंढें उसको मृगतृष्णा में
न भटको रेत के दरिया में
क्यों व्यथित होकर हिय को जलाते हो
क्यों आँसूंओं में खुद को बहाते हो
हाँ माना वचन था जीवन भर का
लगता है अब हर सपना अधूरा
चाँद भी लगता नभ में फीका फीका
रात का चूभता रहता है तुमको अंधेरा
खुशियों से तुमने है क्यों मुँह...