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जाने-दो..!
#जाने-दो..!
जाने दो जो चला गया,
मृगछालों से जो ठगा गया।
बेवक्त जो वक्ता बना गया,
न ढूंढें उसको मृगतृष्णा में
न भटको रेत के दरिया में

क्यों व्यथित होकर हिय को जलाते हो
क्यों आँसूंओं में खुद को बहाते हो

हाँ माना वचन था जीवन भर का
लगता है अब हर सपना अधूरा
चाँद भी लगता नभ में फीका फीका
रात का चूभता रहता है तुमको अंधेरा
खुशियों से तुमने है क्यों मुँह फेरा
शूल हर पथ पर तुमको हर मार्ग में दिखता

वैराग्य को तुमने गले लगाया है
विरक्त हो हर रंग से प्रीत को भुलाया है

घोर कालिमा अंतर से बाहर निकलो
अंतर में भक्ति के ज्योत उज्जवलित करो
आशा के जूग्नू को अपने जीवन में पिरो लो
अधूरेपन को परमपिता चरणो में समर्पित करो

कुंठित पीड़ अंतस्थ की सब कान्हा हर लेंगे
गीता ज्ञान से गूढ़ जीवन अर्थ समझा देंगें

जाने दो हर वेदना के जाल जो तुमने बुने
भुला दो जिसने तुम्हारे हिय की टुकड़े किए

बस लीन रहो प्रभु में मिलेंगे अनमोल रिश्ते
जीवन में मिलेंगे उल्लास के मोती अनोखे

© नेहा माथुर 'नीर'

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