...

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अनोखापन इस आवाम का

कुछ खुशनुमा सा वह पल था हमारा
जिसमें आंसुओं का समंदर भी
बड़ा खूबसूरत नज़र आता था।।
मगर देखो आज के इस ज़माने के दस्तूर को
मानो जीने का ख्वाब भी इससे पहले बड़ा लगता था।।
जिस शानो-शौकत की खुशियों को
हम गले लगाए बैठे थे,
उसे इस आवाम ने ऐसा बदनाम फरमाया है कि
आज चारों तरफ देख यही लगता है,
मेरी अपनी ही खुशियों ने मेरा गला घोट
सिर्फ बेशुमारी से तड़पाया है।।
इस दुनिया की तुम सुनकर चलो तो मौत तुम्हें
धीरे-धीरे अपने पास दबोच लेती है
और अगर अपनी सुनके चलो तो,
यह दुनिया तुम्हें मौत के तरफ
धकेल देना ही मुनासिब समझती है ।।
शायद यही दास्तान चुन लाए हैं हम इंसान
जिसमें मर्जी, शौक, खुशी, गम, होते तो हमारे हैं
लेकिन हमारे हार-जीत से दूसरे रह जाते हैं हैरान।।

© Eshita Ghosh
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